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स व्राध॑तो॒ नहु॑षो॒ दंसु॑जूत॒: शर्ध॑स्तरो न॒रां गू॒र्तश्र॑वाः। विसृ॑ष्टरातिर्याति बाळ्ह॒सृत्वा॒ विश्वा॑सु पृ॒त्सु सद॒मिच्छूर॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa vrādhato nahuṣo daṁsujūtaḥ śardhastaro narāṁ gūrtaśravāḥ | visṛṣṭarātir yāti bāḻhasṛtvā viśvāsu pṛtsu sadam ic chūraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। व्राध॑तः। नहु॑षः। दम्ऽसु॑जूतः। शर्धः॑ऽतरः। न॒राम्। गू॒र्तऽश्र॑वाः। विसृ॑ष्टऽरातिः। या॒ति॒। बा॒ळ्ह॒ऽसृत्वा॑। विश्वा॑सु। पृ॒त्ऽसु। सद॑म्। इत्। शूरः॑ ॥ १.१२२.१०

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:122» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब युद्ध के विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (दंसुजूतः) विनाश करनेहारे वीरों ने प्रेरणा किया (शर्धस्तरः) अत्यन्त बलवान् (गूर्त्तश्रवाः) जिसका उद्यम के साथ सुनना और अन्न आदि पदार्थ (विसृष्टरातिः) जिसने अनेक प्रकार के दान आदि उत्तम-उत्तम काम सिद्ध किये (बाढसृत्वा) जो प्रशंसित बल से चलने (शूरः) और शत्रुओं को मारनेवाला (नहुषः) मनुष्य (नराम्) नायक वीरों की (विश्वासु) समस्त (पृत्सु) सेनाओं में (सदम्) शत्रुओं के मारनेवाले वीर सेनाजन को (इत्) ही ग्रहण कर (व्राधतः) विरोध करनेवालों को युद्ध के लिये (याति) प्राप्त होता है (सः) वह विजय को पाता है ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि अपने शत्रु से अधिक युद्ध की सामग्री को इकट्ठी कर अच्छे पुरुषों के सहाय से उस शत्रु को जीतें ॥ १० ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ युद्धविषय उपदिश्यते ।

अन्वय:

यो दंसुजूतः शर्धस्तरो गूर्त्तश्रवा विसृष्टरातिर्बाढसृत्वा नहुषो नरां विश्वासु पृत्सु सदमिद् गृहीत्वा व्राधतो युद्धाय याति स विजयमाप्नोति ॥ १० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (व्राधतः) विरोधिनः (नहुषः) मनुष्यः (दंसुजूतः) यो दंसुभिरुपक्षयितृभिर्वीरैर्जूतः प्रेरितः सः (शर्धस्तरः) अतिशयेन बलवान् (नराम्) नायकानां वीराणाम् (गूर्त्तश्रवाः) गूर्त्तेनोद्यमेन श्रवः श्रवणमन्नं वा यस्य सः (विसृष्टरातिः) विविधाः सृष्टा रातयो दानादीनि येन सः (याति) प्राप्नोति (बाढसृत्वा) यो बाढेन प्रशस्तेन बलेन सरति सः (विश्वासु) (पृत्सु) सेनासु (सदम्) शत्रुहिंसकसैन्यम् (इत्) एव (शूरः) शत्रूणां हिंसकः ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः शत्रोरधिकां युद्धसामग्रीं कृत्वा सुसहायेन स शत्रुर्विजेतव्यः ॥ १० ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी शत्रूपेक्षा जास्त युद्धसामग्री एकत्रकरून चांगल्या लोकांची मदत घेऊन शत्रूंना जिंकावे. ॥ १० ॥